"कन्यादान"
अपनी हर शादी ब्याह में हम देखते आये है की वधु को शादी के समय परिचितजनो,रिश्तेदारो,औए परिवार के सदस्यों के साथ साथ नगर के लोगो के द्वारा कुछ अंशदान दिया जाता है, जिसे साधारण भाषा में "कन्यादान लिखाना" कहा जाता है, बहुत प्राचीन समय से ये परम्परा चली आ रही है, इस परम्परा का आशय ये है की किसी भी बेटी को पुरे नगर या समाज की बेटी माना जाता है और हर किसी को अपनी बेटी की शादी में कुछ अंशदान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, इस से समाज में आपसी समता और संगठन का भाव बढ़ता है, कन्या दान के सामान वृहद् दान और कोई दुसरा नहीं है ये बात सर्वदा सत्य है तो कंही न कंही इस बहाने पुरे समाज को पूण्य मिलता है,
दूसरी और शास्त्रो के अनुसार इस धन पर सिर्फ और सिर्फ कन्या का अधिकार होता है, और पुरे समाज द्वारा दी गई एक छोटी सी राशि एक बड़ी धनराशि बनकार कन्या के भविष्य के प्रति आने वाली किसी भी अनिश्चितताओ के लिए एक आकास्मिक सहायक कोष का कार्य करता है,
मगर समय के परिवर्तन के साथ साथ ये देखने को मिल रहा है की कन्यादान की ये परम्परा अपने समाप्ति की और है, हमने अपने शादी विवाहो में आडम्बरो को इतनी प्राथमिकता दे दी है की हमें सामाजिकता की शिक्षा का पाठ पढाने वाले सभी रीती रिवाज़ बस औपचारिकताये लगने लगे है, किसी भी रीती रिवाज़ के पीछे छुपे संदेशो को हम समझे और अपनी संस्कृति और सभ्यता पर गर्व करे,
अतः मेरा आप सब से अनुरोध है की आधुनिकता की अंधी दौड़ में न पड़कर इस समाजवाद को गौरान्वित करने वाली परम्परा को जिवित रखे और अपने समाजीक दायित्व को पूरा करने के साथ साथ पूण्य के सहभागी बने,
नगर की किसी भी बेटी की शादी में कन्यादान अवश्य लिखाये,
"हमारी संस्कृति-हमारी विरासत"